मेरठ हर्रा-पांचली बुजुर्ग संपर्क मार्ग पर अमरूद के पेड़ पर फांसी से लटके गुलफाम (30) के शव ने पूरे इलाके को सदमे में डाल दिया है। रविवार दोपहर लगभग तीन बजे जब गुलफाम अपने दो छोटे बेटों के साथ चारा लेने गया था, तब उसके लौटने में विलंब हुआ। बच्चों ने पिता की तलाश की तो नलकूप के पास स्थित अमरूद के बाग में पेड़ पर शव लटका देखा। इस भयावह दृश्य ने परिजनों और ग्रामीणों के दिलों को झकझोर दिया।
परिवार और परिजन सहम गए, मां की मौत के बाद पिता की भी आत्महत्या ने बढ़ाया दर्द
गुलफाम की पत्नी फातिमा की एक साल पहले बेटी अलशिफा के जन्म के दौरान मौत हो चुकी थी। इसके बाद से ही गुलफाम मानसिक तनाव में था। एक छोटे से परिवार के लिए यह संकट बेहद भारी था। पांच बच्चों के सिर से अब पिता का साया भी उठ गया है। बड़ी उम्र के बेटे आहद (8 वर्ष) और अनस (6 वर्ष) के साथ चार साल की बेटी जिया, तीन साल की कासिफा, और एक साल की अलशिफा, जिन्हें अब न केवल मां की कमी महसूस होती थी, बल्कि पिता की मौत ने उनके बचपन को और भी कठिन बना दिया है।
ग्रामीणों और पुलिस ने जुटाई जांच, आत्महत्या के कारणों का पता लगाने में जुटी टीम
सीओ सरधना संजय कुमार जायसवाल ने बताया कि प्रारंभिक जांच में यह स्पष्ट हुआ है कि गुलफाम ने आत्महत्या की है। लेकिन आत्महत्या के कारणों की गहराई से जांच जारी है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट और तहरीर के आधार पर ही आगे की कार्रवाई होगी। पुलिस ने घटनास्थल का मुआयना किया और परिजनों को समझाकर पोस्टमार्टम के लिए राजी किया।
मासूम बच्चों की बिलखती आवाजें, परिजनों का टूटता हुआ मन
घटना की खबर सुनकर परिजन और ग्रामीणों का दर्द छलका। बच्चों की बेचैनी और उनकी ममता भरी पुकारें आसपास के लोगों के दिलों को छू गईं। मां के बिना और अब पिता के बिना इन बच्चों का भविष्य अधर में है। घर में मातम का माहौल छा गया है। परिजन बताते हैं कि गुलफाम के पांच भाई-बहन हैं, लेकिन खुद गुलफाम ने परिवार की जिम्मेदारी अकेले उठाई थी।
गांव-शहर में आत्महत्या की बढ़ती घटनाएं, मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी
यह दुखद मामला एक बार फिर आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं पर सवाल खड़ा करता है। ग्रामीण इलाकों में मानसिक स्वास्थ्य की समस्या पर आमतौर पर ध्यान नहीं दिया जाता। आर्थिक तंगी, पारिवारिक तनाव, और सामाजिक दबाव ऐसे कई कारण हैं जो व्यक्ति को इस कदर परेशान कर देते हैं कि वे आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं।
सरकार और समाज की जिम्मेदारी: मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता जरूरी
ऐसे दुखद मामलों को रोकने के लिए जरूरी है कि मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाई जाए। गांवों में परामर्श केंद्र स्थापित किए जाएं, जहां तनावग्रस्त व्यक्ति बिना हिचक के अपनी समस्या साझा कर सकें। साथ ही, परिवार और समाज को भी मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को गंभीरता से लेना होगा।
किसानों और ग्रामीणों में बढ़ती आर्थिक कठिनाइयाँ, दबाव में मनोवैज्ञानिक तनाव
कृषि प्रधान इलाकों में आर्थिक संकट, फसल खराबी, कर्ज के बोझ के कारण मनोवैज्ञानिक दबाव आम बात हो गई है। कई बार ये वजहें आत्महत्या की ओर ले जाती हैं। गुलफाम की कहानी भी इस पैटर्न से अलग नहीं लगती। छोटे बच्चों के पिता की मौत से परिवार आर्थिक और मानसिक दोनों ही दृष्टि से बेहद कमजोर हो गया है।
समाज के लिए एक चेतावनी: अकेलेपन और दबाव से बाहर निकलने का रास्ता तलाशना जरूरी
आत्महत्या के पीछे गहरे सामाजिक और मानसिक कारण होते हैं। परिवार, दोस्त, और समाज का कर्तव्य है कि वे तनाव में फंसे व्यक्ति का साथ दें और उनके लिए सहारा बनें। हर्रा जैसे छोटे कस्बों में भी इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत है।
मासूमों के लिए मदद और संरक्षण जरूरी, समाज को आगे आना होगा
इन बच्चों की देखभाल और सुरक्षा के लिए तत्काल कदम उठाने होंगे। वे अभी अपने नन्हे दिलों में मां-बाप की मौत का गम भी नहीं भुला पाए थे कि अब पिता का साया भी हट गया। स्थानीय प्रशासन, सामाजिक संगठन, और परिवार मिलकर बच्चों को बेहतर भविष्य दे सकें, यह अब सबसे बड़ी चुनौती है।
30 वर्षीय गुलफाम की यह दर्दनाक आत्महत्या न केवल उनके परिवार के लिए बल्कि पूरे हर्रा कस्बे के लिए एक गहरा सदमा है। छोटे बच्चों के सिर से मां-बाप का साया उठना समाज की असहायता और मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी को उजागर करता है। ग्रामीण इलाकों में मानसिक तनाव और आर्थिक कठिनाइयों से जूझते परिवारों को बचाने के लिए सामाजिक और प्रशासनिक स्तर पर जागरूकता व सहायता की बेहद आवश्यकता है। इस घटना ने एक बार फिर याद दिलाया है कि मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा कितनी खतरनाक हो सकती है और समाज को इसकी रोकथाम में कितनी तेजी से कदम उठाने होंगे।