Vitiligo —जिसे आम भाषा में ‘सफेद दाग’ कहा जाता है—को लेकर फैली भ्रांतियों को तोड़ने और सामाजिक समझ को नया आकार देने के उद्देश्य से Mathura में World Vitiligo Day के अवसर पर एक विशेष परिचर्चा का आयोजन किया गया। विटिलिगो सपोर्ट इंडिया के तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम ने न केवल समाज को एक सकारात्मक संदेश दिया, बल्कि उन लोगों को मंच भी प्रदान किया जो इस स्थिति के बावजूद अपनी पहचान बना चुके हैं।
कार्यक्रम की मुख्य झलकियाँ: प्रेरणा और परिवर्तन का संगम
कार्यक्रम का आयोजन गोविन्द नगर स्थित मनभावन होटल में किया गया, जहां समाज के विभिन्न वर्गों से आए लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इस प्रेरणादायक परिचर्चा में विटिलिगो से प्रभावित लेकिन समाज में अपनी मेधा और मेहनत से विशेष स्थान बनाने वाली कई प्रतिभाओं को सम्मानित किया गया।
संस्थापक रविन्द्र जायसवाल का उद्देश्य: भ्रांतियों को तोड़ने की पहल
विटिलिगो सपोर्ट इंडिया के संस्थापक रविन्द्र जायसवाल ने बताया कि उनका उद्देश्य न केवल विटिलिगो से पीड़ित लोगों को सामाजिक स्वीकृति दिलाना है, बल्कि उन्हें आत्म-गौरव और आत्मविश्वास के साथ समाज की मुख्यधारा में लाना भी है। जायसवाल ने बताया, “हम लोग विटिलिगो को लेकर चल रही सामाजिक भ्रांतियों को खत्म करने के लिए जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं।”
उन्होंने यह भी बताया कि संगठन विभिन्न प्रतियोगिताओं, कैंपेन और जागरूकता अभियानों के माध्यम से विटिलिगो पीड़ितों को आत्मबल और पहचान दिलाने का काम कर रहा है। उनके अनुसार, भारत में विटिलिगो की दर 1-3% है, जबकि राजस्थान में यह दर 5% तक पाई गई है, जो अत्यधिक चिंताजनक है।
विटिलिगो छुआछूत नहीं -वरिष्ठ पत्रकार श्रीप्रकाश शुक्ला की प्रेरणादायक बातें
वरिष्ठ पत्रकार श्रीप्रकाश शुक्ला ने कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि त्वचा का रंग किसी व्यक्ति की पहचान नहीं हो सकता। उन्होंने बताया, “विटिलिगो छुआछूत नहीं है, बल्कि यह एक ऑटोइम्यून सिस्टम की गड़बड़ी, मानसिक तनाव या त्वचा पर चोट के कारण हो सकता है। इससे ग्रसित लोगों को समाज में हेय दृष्टि से देखना न केवल अनुचित है, बल्कि अमानवीय भी है।”
श्री शुक्ला ने बताया कि इस साल की थीम “हर त्वचा के लिए नवाचार, एआई की शक्ति से” विटिलिगो के उपचार में नई तकनीकों की भूमिका को रेखांकित करती है। उन्होंने कहा, “आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अब इस स्थिति की पहचान और उपचार में नई क्रांति ला रहा है।”
मनोचिकित्सक डॉ. सचिन गुप्ता की वैज्ञानिक व्याख्या-यह संक्रामक रोग नहीं
डॉ. सचिन गुप्तामनोचिकित्सा विशेषज्ञ, ने विटिलिगो की वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि यह कोई बीमारी नहीं, बल्कि एक स्किन कंडीशन है, जिसमें त्वचा की मेलानिन उत्पन्न करने वाली कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। उन्होंने बताया, “यह रोग संक्रामक नहीं है, लेकिन इसका मानसिक और सामाजिक प्रभाव अत्यंत गहरा होता है।”
डॉ. गुप्ता ने यह भी स्पष्ट किया कि विटिलिगो से शरीर के किसी भाग को कोई वास्तविक नुकसान नहीं होता है, परंतु मानसिक दबाव और सामाजिक बहिष्कार इसका सबसे खतरनाक पहलू बन जाता है। उन्होंने इसके उपचार के लिए ग्राटिंग, सर्जरी, कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट्स और मेडिकेशन जैसे उपायों की भी चर्चा की।
पीड़ितों की जुबानी: आत्मबल और आत्मसम्मान की मिसाल
कार्यक्रम में शामिल चंदना दास, प्रीति गुप्ताऔर गोविन्द राम ने अपनी व्यक्तिगत कहानियां साझा करते हुए बताया कि विटिलिगो को वे अपनी कमजोरी नहीं, बल्कि अपनी पहचान मानते हैं। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, “हम अपनी त्वचा के रंग से नहीं, अपने कर्मों और सोच से पहचाने जाते हैं।”
इन वक्तव्यों ने न केवल उपस्थित लोगों को भावुक किया, बल्कि कई लोगों को अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रेरित भी किया।
सम्मान समारोह: सफेद दाग को झुठलाती उपलब्धियाँ
परिचर्चा के समापन अवसर पर, विटिलिगो से ग्रसित होकर भी समाज के विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वाले लोगों को वरिष्ठ पत्रकार श्रीप्रकाश शुक्ला द्वारा सम्मानित किया गया। इस सम्मान समारोह का उद्देश्य समाज को यह बताना था कि सफेद दाग सफलता की राह में रुकावट नहीं, बल्कि दृढ़ निश्चय का प्रतीक बन सकता है।
विटिलिगो सपोर्ट इंडिया का संकल्प : एकजुटता का संदेश
कार्यक्रम के अंत में रविन्द्र जायसवाल ने सभी वक्ताओं, प्रतिभागियों और सहयोगियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि समाज को सकारात्मक सोच और वैज्ञानिक समझ से ही बदला जा सकता है। उन्होंने यह भी ऐलान किया कि आने वाले समय में विटिलिगो सपोर्ट इंडिया और बड़े स्तर पर अभियान चलाएगा, ताकि विटिलिगो से जुड़े सभी मिथक जड़ से समाप्त हो जाएं।
वर्ल्ड विटिलिगो डे जैसे आयोजनों की सफलता यही बताती है कि यदि समाज मिलकर प्रयास करे तो किसी भी सामाजिक कलंक को मिटाया जा सकता है। विटिलिगो कोई अभिशाप नहीं, बल्कि एक त्वचा की स्थिति है, जिसे समझदारी, समर्थन और विज्ञान के सहारे सहजता से अपनाया जा सकता है। अब समय आ गया है कि हम हर त्वचा को बराबर सम्मान दें, क्योंकि असली सुंदरता आत्मविश्वास और सोच में होती है, रंग में नहीं।