Baghpat (उत्तर प्रदेश) – उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने न्यायिक प्रक्रिया, पीड़िता की गवाही और वैज्ञानिक साक्ष्यों की अहमियत को एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है। एक किशोरी से सामूहिक दुष्कर्म के मामले में आरोपी राहुल को कोर्ट ने 20 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई है, जबकि आश्चर्यजनक रूप से खुद पीड़िता ने राहुल को निर्दोष बताया था। इसके बावजूद एफएसएल रिपोर्ट (Forensic Science Laboratory Report) ने ऐसी गवाही को पूरी तरह पलट दिया और आरोपी को दोषी साबित किया।


पीड़िता ने आरोपी राहुल को बताया निर्दोष, फिर भी मिला दोष सिद्ध

मार्च 2018 की वह शाम बागपत के एक गांव में तब भयावह बन गई, जब एक नाबालिग लड़की अपने खेत में चारा लेने गई थी। लड़की के पिता ने बागपत कोतवाली में मुकदमा दर्ज कराया कि उसकी बेटी के साथ गांव के ही राहुल और संदीप ने सामूहिक दुष्कर्म किया। जब लड़की ने विरोध किया, तो आरोपियों ने उसकी पिटाई कर उसे बुरी तरह घायल कर दिया।

पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए दोनों आरोपियों को गिरफ्तार किया और जेल भेजा। न्यायालय में मामला POSCO एक्ट के तहत दर्ज हुआ और आरोप पत्र दाखिल किया गया।


मामले में नया मोड़: आरोपी संदीप की आत्महत्या और पीड़िता की बदलती गवाही

जैसे-जैसे केस आगे बढ़ा, यह और भी जटिल होता चला गया। तीन साल पहले आरोपी संदीप ने जेल में फांसी लगाकर आत्महत्या कर लीजिससे केस की दिशा एकदम बदल गई। इसके बाद पीड़िता ने कोर्ट में गवाही देते हुए कहा कि राहुल निर्दोष है और सारा आरोप संदीप पर है। यह बयान कोर्ट में हलचल पैदा करने वाला था, लेकिन वैज्ञानिक साक्ष्यों ने उस गवाही को नकार दिया।


एफएसएल रिपोर्ट ने पलटा पूरा मामला, राहुल साबित हुआ दोषी

पीड़िता की गवाही भले ही राहुल को निर्दोष बताती रही हो, लेकिन एफएसएल (फॉरेंसिक लैब) की रिपोर्ट ने सब कुछ साफ कर दिया। रिपोर्ट में बताया गया कि राहुल और पीड़िता के कपड़ों पर मिले शुक्राणु के नमूने आपस में मेल खाते हैंजिससे यह साफ हो गया कि राहुल इस अपराध में संलिप्त था।

कोर्ट ने इसी आधार पर राहुल को दोषी माना और 20 साल की सजा के साथ ₹50,000 का जुर्माना लगाया। जुर्माना अदा न करने पर सजा में तीन साल की अतिरिक्त वृद्धि का भी आदेश दिया गया।


कोर्ट का स्पष्ट संदेश: वैज्ञानिक साक्ष्य को प्राथमिकता

अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (विशेष पॉक्सो कोर्ट) संजीव कुमार ने अपने फैसले में यह स्पष्ट किया कि किसी भी मामले में केवल मौखिक गवाही ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक साक्ष्यविशेष रूप से फॉरेंसिक जांच, अत्यधिक महत्व रखती है। अदालत ने यह भी कहा कि पीड़िता के बयान बदलने से न्याय की प्रक्रिया भटक सकती है, लेकिन वैज्ञानिक तथ्यों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।


कानूनी दृष्टिकोण: क्या कहता है पॉक्सो एक्ट और फॉरेंसिक प्रमाण?

POSCO एक के अंतर्गत नाबालिग पीड़िताओं के मामलों में विशेष प्रावधान किए गए हैं। इस कानून के तहत यदि कोई अपराध सिद्ध होता है, तो आरोपी को न्यूनतम 20 वर्ष की सजा दी जा सकती है। वहीं, एफएसएल रिपोर्ट को कानूनी रूप से मजबूत और निर्णायक साक्ष्य माना जाता है।


परिवार और गांव में छाया सन्नाटा, लेकिन न्याय की जीत

राहुल को सजा मिलने के बाद गांव और पीड़िता के परिवार में मिश्रित भावनाएं देखी गईं। जहां परिवार वालों को राहत है कि न्याय हुआ, वहीं यह भी साफ है कि एक आरोपी की आत्महत्या और दूसरे की सजा के बाद यह घटना लंबे समय तक याद रखी जाएगी।


क्या कहते हैं महिला अधिकार कार्यकर्ता?

महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह उदाहरण है कि पीड़िता के बयान में बदलाव आने के बावजूद वैज्ञानिक साक्ष्य के बल पर अपराधी को सजा दी जा सकती है। यह फैसला भविष्य में ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए एक नजीर के तौर पर देखा जाएगा।


सामूहिक दुष्कर्म केस और फॉरेंसिक रिपोर्ट्स: बढ़ते भरोसे की कहानी

भारत में बढ़ते दुष्कर्म मामलों में फॉरेंसिक साक्ष्य ने हाल के वर्षों में कई बार महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। न्यायालयें अब केवल गवाहों पर निर्भर नहीं रहतीं, बल्कि डीएनए रिपोर्ट, एफएसएल रिपोर्ट, मेडिकल रिपोर्ट्स और डिजिटल सबूतों को अधिक महत्व दिया जाने लगा है। यही कारण है कि ऐसे मामलों में अभियुक्तों को कड़ी सजा मिलना अब पहले से अधिक संभव हो पाया है।


राहुल की सजा का कानूनी महत्व और समाज पर असर

राहुल को मिली 20 साल की सजा समाज के लिए एक सख्त संदेश है – “दोष छुप नहीं सकते, चाहे कोई कितना भी बचाने की कोशिश करे।” यह मामला साबित करता है कि न्याय प्रक्रिया में तकनीकी साक्ष्य ही अंतिम सत्य होते हैं। साथ ही यह पीड़िताओं को भी यह भरोसा देता है कि अगर वे न्याय चाहें, तो उन्हें मिलेगा – चाहे कितनी भी अड़चनें क्यों न आएं।


**बागपत गैंगरेप केस में कोर्ट का यह फैसला भारतीय न्याय प्रणाली में वैज्ञानिक साक्ष्यों की निर्णायक भूमिका का बेहतरीन उदाहरण है। आरोपी राहुल को 20 साल की सजा और 50 हजार रुपये जुर्माना इस बात को स्थापित करता है कि न्याय में अब सिर्फ गवाही नहीं, तकनीकी सबूत ही सबसे मजबूत आधार बनते जा रहे हैं।**

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