Gonda में डीएम चौपाल से पहले मचा बवाल: वर्चस्व की लड़ाई में लाठी-डंडे चले, पांच हिरासत में, गांव में भारी पुलिस बल तैनात | News & Features Network

Gonda  ज़िले में शनिवार का दिन उस समय तनावपूर्ण हो गया जब नवाबगंज क्षेत्र के तुलसीपुर माझा गांव में आयोजित होने जा रही डीएम चौपाल से पहले ही दो पक्ष आपस में भिड़ गए। यह विवाद महज कहासुनी तक सीमित नहीं रहा, बल्कि लाठी-डंडों और गाली-गलौज के साथ हिंसक झड़प में तब्दील हो गया। मौके की नजाकत को देखते हुए पुलिस को तत्काल हस्तक्षेप करना पड़ा और हालात को काबू में लाने के लिए पांच लोगों को हिरासत में लिया गया। यह घटना सिर्फ गांव की आपसी रंजिश नहीं थी, बल्कि वर्चस्व की पुरानी लड़ाई का ताजा रूप थी।


डीएम के कार्यक्रम से पहले क्यों मचा बवाल?

चौपाल में डीएम नेहा शर्मा का आगमन तय था, जिससे गांव में तैयारी का माहौल था। लेकिन इससे पहले ही ग्राम प्रधान प्रतिनिधि लालजी सिंह और गांव के ही अनिल सिंह के बीच पुरानी तनातनी एक बार फिर उभर कर सामने आ गई। जानकारी के मुताबिक, दोनों पक्ष चौपाल के आयोजन में अपनी-अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराना चाहते थे। स्थानीय राजनीति में अपनी पकड़ और वर्चस्व दिखाने के प्रयास में विवाद ने तूल पकड़ लिया।


गांव में ही हुई हाथापाई, पुलिस की मौजूदगी के बावजूद माहौल बिगड़ा

गांव के लोगों के अनुसार, पहले तो दोनों पक्षों में तीखी बहस हुई, और उसके बाद देखते ही देखते मामला मारपीट तक पहुंच गया। डंडे चले, धक्कामुक्की हुई और माहौल अचानक तनावपूर्ण हो गया। हैरानी की बात यह रही कि चौपाल के आयोजन को लेकर सुरक्षा इंतज़ामों के बावजूद झगड़ा रोकने में देरी हुई। पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए दोनों पक्षों को अलग किया और स्थिति पर नियंत्रण पाया।


डीएम नेहा शर्मा ने दिए कड़े निर्देश, पांच गिरफ्तार

जब जिलाधिकारी नेहा शर्मा को पूरे मामले की जानकारी मिली तो उन्होंने तुरंत सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए। थानाध्यक्ष अभय सिंह ने बताया कि हिंसा में शामिल दोनों पक्षों के कुल पांच लोगों को शांतिभंग की आशंका में हिरासत में लिया गया है। डीएम ने साफ शब्दों में कहा कि किसी भी तरह की अराजकता बर्दाश्त नहीं की जाएगी और कानून हाथ में लेने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएंगे।


गांव में भारी पुलिस बल की तैनाती, सतर्कता बढ़ाई गई

घटना के बाद गांव में अतिरिक्त पुलिस बल भेजा गया ताकि स्थिति को नियंत्रण में रखा जा सके और भविष्य में कोई अप्रिय घटना न हो। पुलिसकर्मी लगातार गश्त कर रहे हैं और गांव में शांति बनाए रखने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं। पुलिस का दावा है कि हालात अब पूरी तरह नियंत्रण में हैं लेकिन प्रशासन कोई चूक नहीं करना चाहता।


गांव की राजनीति में वर्चस्व की लड़ाई कोई नई बात नहीं

तुलसीपुर माझा गांव में यह पहली बार नहीं है जब स्थानीय नेता आपस में भिड़े हों। ग्रामीणों का कहना है कि दोनों पक्षों के बीच पहले भी कई बार आपसी विवाद हुए हैं। ग्राम सभा चुनावों के दौरान भी इनके बीच टकराव हुआ था, और चौपाल के बहाने एक बार फिर वर्चस्व की लड़ाई सामने आ गई। ग्रामीणों में अब भय का माहौल है और लोग प्रशासन से स्थायी समाधान की मांग कर रहे हैं।


गांव के हालात पर नजर बनाए हुए हैं प्रशासनिक अधिकारी

डीएम, एसपी समेत कई वरिष्ठ अधिकारी लगातार मामले पर नजर बनाए हुए हैं। पुलिस सूत्रों के मुताबिक गांव के संवेदनशील इलाकों में सीसीटीवी की निगरानी की जा रही है और कुछ संदिग्धों की सूची तैयार की गई है, जिनपर भविष्य में कानून व्यवस्था भंग करने का संदेह है। थाने में भी अतिरिक्त बल तैनात किया गया है जो हर आने-जाने वालों पर नजर रखे हुए है।


पंचायती राजनीति के पीछे की कड़वी हकीकत

गांवों में ग्राम प्रधान और उनके प्रतिनिधियों के बीच राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई कोई नई बात नहीं है। लेकिन जब यह लड़ाई इतनी हिंसक हो जाए कि डीएम जैसे वरिष्ठ अधिकारी के कार्यक्रम में खलल पड़े, तो यह प्रशासन और शासन दोनों के लिए चिंता का विषय बन जाता है। इस घटना ने एक बार फिर यूपी के गांवों में पंचायत व्यवस्था की सच्चाई को उजागर कर दिया है, जहां जनसेवा से अधिक प्राथमिकता व्यक्तिगत सत्ता की हो गई है।


क्या कहती है स्थानीय जनता?

गांव के कई बुजुर्गों और महिलाओं ने बताया कि इस प्रकार की घटनाएं गांव की बदनामी का कारण बनती हैं। “डीएम खुद हमारे गांव आ रही थीं, ये हमारे लिए गर्व की बात थी, लेकिन कुछ लोगों ने गांव की इज्जत मिट्टी में मिला दी,” एक स्थानीय महिला ने दुख प्रकट करते हुए कहा। कई ग्रामीणों ने मांग की है कि प्रशासन ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जो गांव में अशांति फैलाते हैं।


राजनीतिक लाभ उठाने की भी हो रही चर्चा

कुछ स्थानीय सूत्रों की मानें तो यह लड़ाई केवल गांव के वर्चस्व तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसमें राजनीतिक समर्थन की भी झलक देखने को मिली। माना जा रहा है कि दोनों पक्षों को स्थानीय नेताओं का समर्थन प्राप्त है और इसी वजह से वे इतनी हिम्मत से सामने आए। हालांकि प्रशासन ने साफ किया है कि इस मामले में निष्पक्ष कार्रवाई की जाएगी और दोषी चाहे कोई भी हो, बख्शा नहीं जाएगा।


आखिरी शब्द: क्या गांव में दोबारा लौटेगा अमन?

अब सवाल यह है कि क्या तुलसीपुर माझा गांव में अमन-चैन दोबारा लौट पाएगा या यह वर्चस्व की जंग बार-बार गांव को हिंसा के गर्त में धकेलेगी? प्रशासन ने अपनी ओर से हर जरूरी कदम उठाने का भरोसा दिलाया है, लेकिन गांव के लोग तब तक चैन से नहीं बैठेंगे जब तक दोषियों को सजा और गांव को स्थायी शांति नहीं मिल जाती।


गोंडा के तुलसीपुर माझा गांव में डीएम चौपाल से पहले हुई हिंसक झड़प ने एक बार फिर साबित कर दिया कि पंचायत स्तर की राजनीति में वर्चस्व की जंग किस हद तक जा सकती है। प्रशासन की सतर्कता और सख्ती के बावजूद ऐसी घटनाएं यह सवाल उठाती हैं कि गांवों में स्थायी समाधान के लिए क्या कदम जरूरी हैं। जब तक जनप्रतिनिधि राजनीति को सेवा नहीं बल्कि शक्ति का माध्यम समझते रहेंगे, तब तक ऐसे घटनाक्रमों से गांवों की छवि खराब होती रहेगी।

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