Mathura बांकेबिहारी मंदिर के चारों ओर बनने जा रहे कॉरिडोर को लेकर प्रशासन ने अपनी तैयारियों को तेज कर दिया है। वर्ष 2023 में हुई सर्वे रिपोर्ट में कुल 275 भवनों और दुकानों को इस कॉरिडोर के दायरे में चिन्हित किया गया था, जिनका पुनः डोर-टू-डोर सत्यापन कराया जा रहा है। अभी तक करीब 70 भवनों का सत्यापन पूरा हो चुका है और बाकि भवनों की जांच भी तेजी से जारी है। यह कॉरिडोर निर्माण परियोजना न केवल प्रशासन के लिए बल्कि स्थानीय समुदाय और मंदिर से जुड़े गोस्वामी समाज के लिए भी एक बड़ी लड़ाई बन चुकी है।
प्रशासन की तैयारी: कॉरिडोर के लिए डोर-टू-डोर सर्वे और मुआवजा योजना
एडीएम एफआर डॉ. पंकज वर्मा ने बताया कि सत्यापन टीम में लगभग एक दर्जन सदस्य शामिल हैं, जो विभिन्न इलाकों में जाकर भवनों का वर्तमान हालचाल, क्षेत्रफल, मालिकाना हक और किरायेदारों की जानकारी जुटा रहे हैं। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करने के लिए है कि कॉरिडोर के निर्माण के दौरान किसी को अनावश्यक परेशानी न हो।
सरकार का दावा है कि कॉरिडोर निर्माण से न केवल श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधाएं मिलेंगी, बल्कि मंदिर के प्रांगण में भी व्यवस्था सुधरेगी। इसके लिए 5 एकड़ से अधिक भूमि पर 37,000 वर्गमीटर की पार्किंग बनाई जाएगी, जिससे वाहनों के लिए पर्याप्त जगह सुनिश्चित हो सके।
मुआवजे के तौर पर प्रभावित दुकानदारों और मकान मालिकों को उचित राशि के साथ-साथ ‘दुकान के बदले दुकान’ की भी पेशकश की जाएगी। प्रशासन का जोर है कि यह कदम मंदिर की पारंपरिक संरचना और सौंदर्य को बरकरार रखते हुए किया जाएगा।
गोस्वामी समाज का विरोध: निजी संपत्ति का दावा और सांस्कृतिक धरोहर की चिंता
गोस्वामी समाज का कहना है कि बांकेबिहारी मंदिर उनकी निजी संपत्ति है और इसके पुनर्विकास के लिए प्रशासन का यह कदम अनुचित है। उनका यह भी तर्क है कि मंदिर परिसर के धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को बिना उनकी सहमति के छेड़छाड़ नहीं किया जाना चाहिए।
रविवार नाथ गोस्वामी, जो मंदिर के संस्थापक स्वामी हरिदास गोस्वामी के वंशज हैं, ने सुप्रीम कोर्ट में इस परियोजना के खिलाफ याचिका भी दायर की थी। उनका आरोप है कि कॉरिडोर निर्माण से मंदिर के आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र और धार्मिक माहौल में असामंजस्य पैदा होगा, जो पांच सौ साल पुरानी परंपराओं और धार्मिक आस्था के लिए खतरा है।
हालांकि, सरकारी रेवेन्यू दस्तावेजों के मुताबिक, मंदिर की जमीन गोविंददेव के नाम से है, न कि सीधे मंदिर के नाम से, जिससे गोस्वामी समाज के दावे पर सवाल उठते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का रुख: प्रशासन को मिला निर्माण का मार्ग
15 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार की जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को संशोधित करते हुए कॉरिडोर निर्माण का रास्ता साफ कर दिया। हालांकि, मंदिर की निधि का उपयोग परियोजना में नहीं किया जा सकेगा।
इस फैसले के बाद प्रशासन ने निर्माण की तैयारियों को और भी गति दी है। वहीं, गोस्वामी समाज ने कोर्ट के आदेश में संशोधन की मांग की है और कोर्ट से पुनर्विचार की गुहार लगाई है। इस पूरे घटनाक्रम ने मंदिर पुनर्विकास योजना को और अधिक विवादास्पद बना दिया है।
श्रद्धालुओं के लिए राहत या स्थानीय विरोध की जंग?
कॉरिडोर का उद्देश्य मंदिर के आसपास की तंग गलियों और भीड़ को कम करना है ताकि हजारों श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधा मिल सके। लेकिन स्थानीय दुकानदार, मकान मालिक और खासकर गोस्वामी समाज इस परिवर्तन के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं।
किसानों, दुकानदारों और मकान मालिकों का कहना है कि मुआवजा देने की बात सही है, लेकिन उनका जीवन यापन और सांस्कृतिक पहचान इससे जुड़ी हुई है, जिसे सरकार नजरअंदाज कर रही है।
बांकेबिहारी कॉरिडोर: मंदिर पुनर्विकास में आधुनिकता और विरासत की जंग
यह परियोजना न केवल एक भौतिक पुनर्विकास की योजना है, बल्कि यह आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने के लिए भी एक चुनौती है। मंदिर परिसर की पारंपरिक संरचना को आधुनिक सुविधाओं से जोड़ना आसान नहीं होगा।
यहां तीन रास्ते बनाए जाएंगे ताकि श्रद्धालु आसानी से मंदिर पहुंच सकें, लेकिन इसका डिजाइन ऐसा होगा कि मंदिर का ऐतिहासिक स्वरूप बना रहे। पार्किंग की व्यवस्था से आने-जाने में सुविधा होगी, परंतु इसकी लागत भी कई सवालों को जन्म दे रही है।
सार्वजनिक और प्रशासनिक स्तर पर बढ़ता विवाद
कॉरिडोर निर्माण के मुद्दे ने प्रशासन और स्थानीय समुदाय के बीच विवाद को गहरा दिया है। जहां एक ओर सरकार मंदिर की व्यवस्था सुधारना चाहती है, वहीं दूसरी ओर मंदिर प्रबंधन और गोस्वामी समाज परियोजना को मंदिर के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए खतरा मानते हैं।
पिछले साल से चली आ रही इस बहस में अब सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप भी एक नया मोड़ लेकर आया है। यह लड़ाई केवल एक कॉरिडोर निर्माण की नहीं, बल्कि धार्मिक अधिकार, सांस्कृतिक विरासत और आधुनिक विकास के बीच संतुलन की है।
आगे का रास्ता: क्या होगा बांकेबिहारी मंदिर कॉरिडोर का भविष्य?
अगले कुछ महीनों में प्रशासन द्वारा बाकी भवनों के सत्यापन और मुआवजा वितरण की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। लेकिन गोस्वामी समाज की लड़ाई भी कोर्ट के माध्यम से जारी रहेगी।
श्रद्धालु, स्थानीय व्यापारी और प्रशासन के बीच एक समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता है ताकि धार्मिक आस्था और विकास दोनों साथ-साथ चल सकें।
बांकेबिहारी मंदिर कॉरिडोर परियोजना ने प्रशासन और गोस्वामी समाज के बीच जमीनी मतभेदों को उजागर किया है। यह संघर्ष मंदिर की ऐतिहासिक विरासत और आधुनिक आवश्यकताओं के बीच संतुलन स्थापित करने की चुनौती पेश करता है। भविष्य में इस परियोजना के आगे बढ़ने के लिए सभी पक्षों को संवाद और समझौते के रास्ते खोजने होंगे, ताकि धार्मिक आस्था और श्रद्धालुओं की सुविधा दोनों सुनिश्चित हो सकें।