गोकश Imran Encounter: पुलिस की बर्बरता से सीएम पोर्टल तक, थाने में बीमार हुई मासूम बच्ची – बढ़ता पुलिसिया दबाव या सच्चाई की तलाश? | News & Features Network

31 मई को थाना रकाबगंज क्षेत्र में हुए कथित पुलिस मुठभेड़ के मामले ने तूल पकड़ लिया है। Imran नाम के युवक को पुलिस ने प्रतिबंधित मांस के साथ पकड़ा और मुठभेड़/Encounter में उसके पैर में गोली मार दी गई। हालांकि इस गिरफ्तारी के बाद पूरा मामला उलझता चला गया। इमरान ने कोर्ट में पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए—हिरासत में बर्बर मारपीट, साजिश के तहत गोली मारना और झूठा एनकाउंटर दिखाना।

कोर्ट में मेडिकल रिपोर्ट ने खोले राज, पुलिस की पोल खुली

गोकश इमरान ने कोर्ट में पेश होकर अपने जख्म दिखाए। कोर्ट ने तत्काल दोबारा मेडिकल कराने के आदेश दिए। दोनों मेडिकल रिपोर्ट्स में चोटों में अंतर पाया गया, जिससे पुलिस की कार्रवाई पर गंभीर सवाल खड़े हो गए। अदालत ने आरोपित पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर के आदेश दिए, जिसके बाद रकाबगंज थाने में अज्ञात पुलिसकर्मियों पर आपराधिक षड्यंत्र, मारपीट और कस्टडी में अत्याचार की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया।

पत्नी और साले थाने में कैद: दबाव की राजनीति?

इमरान की पत्नी गुड़िया और उसके दो भाई साहिल व जीशान को पुलिस कथित रूप से उनके घर से बिना कोई कानूनी कार्यवाही के उठा लाई। गुड़िया के अनुसार उन्हें बुधवार रात से लेकर शुक्रवार तक थाने में बैठा कर रखा गया, बिना किसी स्पष्ट आरोप या पूछताछ के। जब गुड़िया ने मुख्यमंत्री पोर्टल पर ऑनलाइन शिकायत की, तब जाकर पुलिस ने उन्हें रिहा किया।

मुख्यमंत्री पोर्टल बना आखिरी सहारा, पुलिस ने शिकायत वापस लेने का डाला दबाव

गुड़िया ने बताया कि पुलिस ने उनसे बार-बार कहा कि वह शिकायत वापस ले लें। थाने में उसी दरोगा ने सामने आकर धमकाया, जिसने कथित तौर पर इमरान को गोली मारी थी। उसने खुलेआम कहा, “मामला खत्म करो, वरना अंजाम भुगतने होंगे।” यह भी सामने आया कि थाने में मौजूद छह माह की बच्ची की तबीयत बिगड़ गई, फिर भी मां-बेटी को नहीं छोड़ा गया।

बच्ची की बिगड़ती हालत: इंसानियत पर सवाल

थाने में लगभग दो दिन तक बैठाए जाने के दौरान गुड़िया की छह माह की बच्ची की तबीयत बिगड़ गई। उसने कई बार अधिकारियों से निवेदन किया लेकिन उसे न तो तुरंत रिहा किया गया और न ही मेडिकल सुविधा उपलब्ध कराई गई। यह घटना पुलिस की संवेदनहीनता का प्रतीक बन गई है।

शांति भंग में चालान: कानून का दुरुपयोग या डराने की रणनीति?

गुड़िया के भाई साहिल और जीशान को पुलिस ने अंततः शांति भंग की धारा में चालान किया। लेकिन जिस तरीके से उन्हें उठाया गया और दो दिन तक थाने में बैठा कर रखा गया, उसने इस बात की आशंका को गहरा कर दिया कि पुलिस गोकश इमरान मामले में गवाहों और परिवार पर दबाव बना रही है।

मामले में अधिकारियों की चुप्पी: जांच की जरूरत या लीपापोती?

पुलिस विभाग की ओर से अब तक इस मामले में कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया गया है। पहले कहा गया था कि अधिकारियों द्वारा रिवीजन में जाने की प्रक्रिया अपनाई जाएगी, लेकिन बाद में रकाबगंज थाने में ही अज्ञात कर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर मामले को टालने की कोशिश की गई।

गोकश इमरान के खिलाफ मामला: मांस बरामदगी बनाम मुठभेड़ की वैधता

पुलिस का दावा है कि इमरान के पास से प्रतिबंधित मांस बरामद हुआ था। हालांकि, इसके आधार पर मुठभेड़ की वैधता और हिरासत में गोली मारने की कार्रवाई को जायज नहीं ठहराया जा सकता। यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या अपराधी के अपराध की सजा पुलिसिया बर्बरता होनी चाहिए?

यूपी पुलिस की कार्यशैली पर एक और दाग

उत्तर प्रदेश पुलिस के खिलाफ इस तरह के आरोप पहले भी सामने आते रहे हैं। हिरासत में उत्पीड़न, झूठे एनकाउंटर और राजनीतिक दबाव में की गई कार्रवाई, कानून व्यवस्था को कमज़ोर करती है और आमजन में भय का वातावरण बनाती है।

क्या न्याय मिलेगा?

अब सबकी निगाहें न्यायपालिका और उच्चस्तरीय जांच पर हैं। क्या गोकश इमरान को न्याय मिलेगा? क्या पुलिस विभाग दोषी कर्मियों पर कार्रवाई करेगा? क्या महिला और बच्चों के साथ हुई इस कथित बर्बरता की सच्चाई सामने आएगी?


गोकश इमरान एनकाउंटर मामला सिर्फ एक व्यक्ति की गिरफ्तारी का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की पारदर्शिता और जवाबदेही का मुद्दा बन गया है। अब यह देखना होगा कि शासन और प्रशासन इसे कैसे संभालते हैं, और क्या वाकई दोषियों को सजा मिलती है या फिर यह मामला भी अन्य मामलों की तरह धूल फांकता रह जाएगा।

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