CBI की चेतावनी से मचा हड़कंप: UPPSC भर्ती घोटाले की जांच बंद करने की नौबत, आयोग और सरकार की चुप्पी पर सवाल | News & Features Network

CBI के निदेशक प्रवीण सूद द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह को लिखे गए एक पत्र ने राजनीतिक गलियारों में सनसनी फैला दी है। पत्र में स्पष्ट रूप से चेतावनी दी गई है कि यदि UPPSC आयोग और राज्य सरकार एक महीने के भीतर जरूरी दस्तावेज और अभियोजन की स्वीकृति नहीं देते हैं, तो CBI को APS भर्ती घोटाले की जांच बंद करनी पड़ सकती है

चार साल की जांच, लेकिन सहयोग नदारद

CBI द्वारा अपर निजी सचिव (APS) भर्ती परीक्षा-2010 में धांधली की जांच वर्ष 2020 में शुरू की गई थी। चार वर्षों में सिस्टम एनालिस्ट गिरीश गोयल, सेक्शन ऑफिसर विनोद कुमार सिंह और समीक्षा अधिकारी लाल बहादुर पटेल के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति मांगी गई, लेकिन अब तक कोई अनुमति नहीं दी गई है

आयोग पर गंभीर आरोप

पत्र में कहा गया है कि CBI ने आयोग से PCS-2015 की भर्ती से संबंधित अभिलेखों की मांग करीब 15 बार कीलेकिन आयोग ने कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए। यह असहयोग का स्तर इतना गंभीर है कि इससे CBI की जांच लगभग ठप हो गई है।


अभियोजन स्वीकृति की प्रतीक्षा में अटका न्याय

गंभीर आरोपों में घिरे कर्मचारी

CBI की जांच में सामने आया है कि APS 2010 परीक्षा में बड़े पैमाने पर धांधली हुई थी। इसके मुख्य आरोपियों में गिरीश गोयल, विनोद कुमार सिंह और लाल बहादुर पटेल के नाम प्रमुखता से सामने आए हैं। इन पर परीक्षा प्रक्रिया में हेरफेर, फर्जीवाड़ा और चयन सूची में गलत तरीके से नाम जोड़ने के आरोप हैं।

सरकार की चुप्पी क्यों?

CBI का दावा है कि उसने राज्य सरकार से अभियोजन की अनुमति कई बार मांगीलेकिन सरकार ने अब तक कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया है। इससे सवाल उठ रहे हैं कि क्या राज्य सरकार किसी को बचा रही है? या फिर सरकारी मशीनरी में ही इतनी सुस्ती है कि भ्रष्टाचार के आरोपों पर भी कार्रवाई नहीं हो पा रही।


PCS 2015 भर्ती के दस्तावेज भी गायब!

आयोग का असहयोग क्यों?

CBI की ओर से PCS 2015 भर्ती से जुड़े दस्तावेजों की मांग भी की गई, लेकिन आयोग ने जानबूझकर इन दस्तावेजों को देने से परहेज किया। CBI का आरोप है कि आयोग ने बार-बार पत्र लिखने के बावजूद दस्तावेज नहीं दिएजिससे जांच में बाधा उत्पन्न हो रही है।

क्या है PCS 2015 विवाद?

PCS 2015 की परीक्षा भी कई विवादों में रही। अभ्यर्थियों ने आरोप लगाए थे कि रिजल्ट में गड़बड़ी, किसी विशेष क्षेत्र के अभ्यर्थियों को फायदा और उत्तर पुस्तिकाओं की हेराफेरी जैसी गड़बड़ियां की गईं।


CBI की जांच पर लग सकता है पूर्णविराम?

जांच की दिशा हुई धुंधली

CBI निदेशक ने साफ शब्दों में लिखा है कि आयोग और राज्य सरकार के इस असहयोग से जांच पूरी करना लगभग असंभव हो गया है। अगर अगले एक महीने में आवश्यक कार्रवाई नहीं हुई, तो CBI इस केस को बंद करने पर मजबूर हो जाएगी। यह देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी के लिए भी न्याय प्रणाली पर बड़ा धक्का होगा।

राज्य सरकार की भूमिका संदिग्ध

CBI के पत्र ने सरकार की नीयत पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। जानकारों का मानना है कि सरकार की उदासीनता कहीं न कहीं उन अधिकारियों को बचाने की कोशिश हो सकती है, जो इस घोटाले में शामिल थे। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस मामले में हस्तक्षेप करते हैं या नहीं


राजनीतिक भूचाल की आहट

विपक्ष को मिला मुद्दा

इस खबर के सामने आते ही विपक्षी दलों ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बसपा ने यूपी सरकार पर आरोप लगाया कि वह भ्रष्टाचार के मामलों को दबा रही है।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि योगी सरकार “भ्रष्ट अधिकारियों को संरक्षण दे रही है”।

जनता में बढ़ा आक्रोश

भर्ती घोटालों से परेशान बेरोजगार युवाओं में इस खबर को लेकर नाराज़गी और गुस्सा साफ तौर पर दिख रहा है। सोशल मीडिया पर युवाओं ने #UPPSCSCAM और #Justiceforaspirants जैसे हैशटैग के साथ अपना विरोध जताना शुरू कर दिया है।


क्या खत्म हो जाएगा युवाओं का भरोसा?

भर्ती परीक्षाओं में पारदर्शिता सवालों के घेरे में

यह मामला एक बार फिर साबित करता है कि उत्तर प्रदेश में सरकारी भर्ती प्रक्रियाएं पारदर्शिता से कोसों दूर हैं। APS 2010 और PCS 2015 जैसे बड़े घोटाले अगर बिना जांच बंद हो जाते हैं, तो भविष्य में कोई भी परीक्षा पर भरोसा नहीं करेगा।

भविष्य की उम्मीदें

अब सवाल ये है कि क्या केंद्र सरकार इस मामले में हस्तक्षेप करेगी? क्या CBI को पूरा सहयोग मिलेगा? और सबसे बड़ा सवाल – क्या दोषियों को सजा मिलेगी या मामला फाइलों में ही दफ्न हो जाएगा?


उत्तर प्रदेश की जनता और खासकर नौकरी के इंतजार में बैठे लाखों युवाओं की निगाहें अब इस घोटाले की जांच पर टिकी हैं। अगर CBI की जांच बंद हो जाती है, तो यह सिर्फ एक कानूनी हार नहीं, बल्कि व्यवस्था पर से विश्वास की भी हार होगी। जनता चाहती है कि दोषियों को सख्त सजा मिले और हर भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here